About Me

India
Another misfit in this so called perfect world.

Monday, September 27, 2010

डर




तेरे खामोश सवालों से जो दूर भागा हूँ,
कि अब ठहर जाने से डर लगता है |
इतने पत्थर बटोर रखे हैं ज़माने ने राहों में,
ठोकरे खा कर संभल जाने में डर लगता है |

जिक्र तेरा ज़ेहन में है लेकिन, लबों पे आ पाता नहीं,
बन्दे को खुदाया बंदगी निभाने से डर लगता है |
तेरी ख़ुशबू मेरी साँसों में इस कदर है लिपटी,
मदहोश हो कर दम निकल जाने से डर लगता है |

---------------------------------------------------------

मुझसे मत पूछिए ये आंधी कब चली, कैसे ?
पाँव उखड़े हैं, आशियाना उजड़ जाने से डर लगता है,
मैंने कल शाम जलायी थी कुछ पुरानी यादें,
राख तुझ तक न पहुँच जाए, ज़माने से डर लगता है |

बहुत आहिस्ता चढ़ रहा है तेरी हाथों पे हिनाई का रंग,
अश्कों के संग ये भी ना बह जाए, से डर लगता है |

- Gyan Vikas

No comments: