Wrote these lines a few days back - Nothing special about it, just wanted to see this मुक्तक in the background color of my blog.. &... It doesn't look as sad as it felt when it was written.
मेज की दराज में एक ख़त पड़ा है,
भेजने को रखा था कल शाम से |
शफ़क से कुछ रंग तोड़ लाया था,
सूखे, सुर्ख़ लाल, बासंती, पीले
तेरे जूड़े में लगाने के लिए |
रात भर पानी गिरता रहा है, मुसलसल
दिल की तरह ख़त भी गीला है,
अश्कों की तरह बह चले हैं रंग, हौले - हौले |
- Gyan
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