About Me

India
Another misfit in this so called perfect world.

Monday, September 27, 2010

डर




तेरे खामोश सवालों से जो दूर भागा हूँ,
कि अब ठहर जाने से डर लगता है |
इतने पत्थर बटोर रखे हैं ज़माने ने राहों में,
ठोकरे खा कर संभल जाने में डर लगता है |

जिक्र तेरा ज़ेहन में है लेकिन, लबों पे आ पाता नहीं,
बन्दे को खुदाया बंदगी निभाने से डर लगता है |
तेरी ख़ुशबू मेरी साँसों में इस कदर है लिपटी,
मदहोश हो कर दम निकल जाने से डर लगता है |

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मुझसे मत पूछिए ये आंधी कब चली, कैसे ?
पाँव उखड़े हैं, आशियाना उजड़ जाने से डर लगता है,
मैंने कल शाम जलायी थी कुछ पुरानी यादें,
राख तुझ तक न पहुँच जाए, ज़माने से डर लगता है |

बहुत आहिस्ता चढ़ रहा है तेरी हाथों पे हिनाई का रंग,
अश्कों के संग ये भी ना बह जाए, से डर लगता है |

- Gyan Vikas

Friday, September 24, 2010

रंग

Wrote these lines a few days back - Nothing special about it, just wanted to see this मुक्तक in the background color of my blog.. &... It doesn't look as sad as it felt when it was written.

मेज की दराज में एक ख़त पड़ा है,
भेजने को रखा था कल शाम से |
शफ़क से कुछ रंग तोड़ लाया था,
सूखे, सुर्ख़ लाल, बासंती, पीले
तेरे जूड़े में लगाने के लिए |

रात भर पानी गिरता रहा है, मुसलसल
दिल की तरह ख़त भी गीला है,
अश्कों की तरह बह चले हैं रंग, हौले - हौले |

- Gyan