सांस में कुछ अटका हुआ सा है
न बोला जाता है न ही भूला जाता है |
जैसे परिंदे कैद किये हो किसी ने
और टूट जाते हो उनके नाजुक पंख
पिंजड़े के तारों से लड़ कर |
उड़ने को बेकरार उन पंखो को
भरोसा है तेरे न्याय पर,
पंख दिए हैं तो उड़ान भी देगा, मालिक
और फिर भूल जायेगा वो सारे घाव |
एक नयी दुनिया का ख्वाब
जो हर पंख देखता है, और फिर
जीता है उन्हें इसी पिंजड़े में |
कभी तो सुबह कि नयी आगाज़ होगी,
बादलों से ऊपर
जहाँ सूरज लाल होता है |
बस एक नजर देख ले दाता
आकर मेरे अरमानो को, मेरे घावों को |
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