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India
Another misfit in this so called perfect world.

Wednesday, August 17, 2011

सामर्थ्य

हर सुबह सूरज एक नयी मुस्कान के साथ आता है - एक कुटिल मुस्कान के साथ; ऐसे, जैसे चाँद को लजा रहा हो "देखो, कैसे अपनी लाख कोशिशों के बाद भी तुम रात को दिन ना बना पाए, अँधेरे को उजाला ना बना पाए |" और, चाँद हर रात पुरजोर कोशिश करता है उजाला फ़ैलाने की, स्वयं को जला कर ही सही, फिर डूब जाने को इसी अन्धकार में एक अमावस की रात को |

बूँद बूँद कर रात है झरती,
कतरा कतरा चाँद सुलगता,
दिवस दिवस ज्यों बीतते जाते,
स्वयं ही लज्जित होकर जलता |

सुबह का सूरज बेशर्मी से,
चाँद का सीना छलनी करता,
फेंक के किरने लाली अपनी,
रैन बिचारी को संग ले चलता |

है सामर्थ्य अगर ही सबकुछ,
फिर कैसा यह न्याय, विधाता ?
क्षुधा चाँद की प्यासी रहती,
सूरज भाग्य पर क्यों इठलाता ?

- Gyan Vikas