आदमी की सर पे सवार आदमी,
आदमी की सुनता दहाड़ आदमी ।
देखता हूँ रोज ये तमाशा ए रोजगार,
रूह है बिकती यहाँ , खरीददार आदमी ।
मिलते हैं रोज हंसकर ये डरते हुए चेहरे
शाम तक मुरझा जाता है आदमी ।
आता है पशोपेश में, जाता है सिमट कर,
किस जहर का होता है शिकार आदमी ?
वो कौन सी जात, हुकूमत है जिसकी,
कि करने को है तैयार कारोबार आदमी ?
ये मेरे दफ्तर का अर्ज ए बयां ग़ालिब,
होता है रोज यहाँ शर्मसार आदमी ।