About Me

India
Another misfit in this so called perfect world.

Sunday, January 4, 2015

ये जो नदी है

तुमको देखकर  सोचता हूँ,
हम दोनों कितने अलग हैं ।
बिल्कुल  नदी के दोनों तीरों की तरह,
दो घाट, बिल्कुल आमने - सामने ।

तुम्हारे घाट पर भीड़ आती है,
पूजा - अर्चना के लिए,
मंगल आरती करने के लिए ।
और मैं, श्मशान की तरह -
निर्जन, शांत और नीरस ।

जाने ये कौन सी नदी है बीच में,
जो मुझे तुमसे जोड़ती है ?
बहती है हमारे बीच में -
मंथर, कल - कल, और निर्बाध ।
तुम्हारी पूजा के फूल भी,
मेरी चिता के भस्म भी -
दोनों बह जाते हैं इसमें ।

ना कुछ तेरा, ना कुछ मेरा,
सब कुछ इस नदी का हो जैसे ।
मैं नहीं, तुम भी नहीं -
तो भी यह नदी यूँ ही बहेगी,
किन्हीं और घाटों को छूते हुए ।

Monday, December 8, 2014

दफ़्तर का हाल

आदमी की सर पे सवार  आदमी,
आदमी की सुनता दहाड़ आदमी ।
देखता हूँ रोज ये तमाशा ए रोजगार,
रूह है बिकती यहाँ , खरीददार आदमी ।

मिलते हैं रोज हंसकर ये डरते हुए चेहरे
शाम तक मुरझा जाता है आदमी ।
आता है पशोपेश में, जाता है सिमट कर,
किस जहर का  होता है शिकार आदमी ?

वो कौन सी जात, हुकूमत है जिसकी,
कि करने को है तैयार कारोबार आदमी ?
ये मेरे दफ्तर का अर्ज ए बयां ग़ालिब,
होता है रोज यहाँ शर्मसार आदमी ।